कांग्रेस के ‘चिंतन’ से निकली बीजेपी के ‘हिंदुत्व’ की काट

दिल्ली व्यूरो
उदयपुर: कांग्रेस (Congress) के ‘चिंतन शिविर’ में भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) के ‘हिंदुत्व’ की राजनीति को लेकर गहरी चर्चा हुई। इसमें कांग्रेस पार्टी के नेता दो अलग-अलग धुरियों पर खड़े नजर आये। कांग्रेस के कई सदस्यों खासकर उत्तर प्रदेश के नेताओं ने हिंदुत्व को लेकर नरम रुख अपनाने की वकालत की और कहा कि पार्टी को धार्मिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेना चाहिये ताकि यह अलग-थलग न दिखे। दूसरी तरफ कई वरिष्ठ नेताओं का कहना था कि कांग्रेस को अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि के साथ ही जुड़ा रहना चाहिए और उसे भाजपा (BJP) की राह पर चलकर उसे पीछे करने की कोशिश नहीं करनी चाहिये। उनकी राय में ऐसा करने से पार्टी को और अधिक नुकसान ही होगा। हालांकि पार्टी को मजबूत करने और पीएम मोदी (PM Narendra Modi)-अमित शाह (Amit Shah) को चुनौती देने के लिए एक साल के लिए राहुल गांधी कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी (rahul gandh) तक पदयात्रा करेंगे।
सियासी जमीन को मजबूत करने के मद्देनजर राहुल गांधी अगले एक साल में कश्मीर से कन्याकुमारी तक यात्रा पर करेंगे। 2024 लोकसभा चुनाव पर कांग्रेस की कड़ी नजर रहेगी, इसी कारण चिंतन शिविर को शुरूआत से पहले शनिवार को राहुल गांधी ने प्रभारियों, अध्यक्षों और महासचिवों के साथ सुबह बैठक भी की थी। राहुल गांधी की यह यात्रा बस से, ट्रैन से और ज्यादातर पैदल होगी, इस यात्रा की तैयारी की जिम्मेदारी केसी वेणुगोपाल को दी गई है।
दरअसल छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने चिंतन शिवर में पार्टी को हिंदुत्व की नरम छवि के साथ चलने की वकालत की। उत्तर प्रदेश के आचार्य प्रमोद कृष्णन ने भी बघेल और कमलनाथ का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि पार्टी को हिंदुत्व की नरम छवि अपनाने से घबराना नहीं चाहिये।
वहीं कांग्रेस के कुछ नेताओं जैसे महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण और दक्षिण भारत के नेताओं ने इसका पुरजोर विरोध किया। चव्हाण का कहना था कि विचारधारा से संबंधित मुद्दों पर स्पष्टता रहनी चाहिये और कांग्रेस को भाजपा की नकल नहीं करनी चाहिये। कर्नाटक के बी के हरिप्रसाद ने भी कहा कि कांग्रेस को अपनी मूल विचारधारा से ही जुड़ा रहना चाहिये। बघेल कई त्योहारों और धार्मिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेकर हिंदुओं को रिझाने की कोशिश में लगे हैं, जिसका कांग्रेस के कई नेताओं ने विरोध किया और कहा कि पार्टी को अपनी विचारधारा से भटकना नहीं चाहिये। यह भी तर्क दिया गया कि इससे अल्पकालिक चुनावी लाभ हो सकता है लेकिन कांग्रेस को भाजपा की ‘बी’ टीम की तरह नहीं दिखना चाहिये।
बी के हरिप्रसाद ने राहुल गांधी का उदाहरण देते हुये कहा कि मंदिर में जाकर उनके प्रार्थना करने से कोई लाभ नहीं मिला। इसी वजह से कांग्रेस को धर्मनिरपेक्ष छवि के साथ ही बने रहना चाहिये। यह बहस दो दिन तक जारी रही कि भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडे का सामना कैसे किया जाये और कांग्रेस इसे लेकर क्या रुख अपनाये। कांग्रेस के बुजुर्ग नेता जहां धर्मनिरपेक्ष छवि से जुड़े रहने की वकालत करते रहे, वहीं पार्टी के युवा नेताओं ने हिंदुत्व को लेकर नरम रुख अपनाने की बात की।
कांग्रेस चिंतन शिविर में हुई बहसों को लेकर देर शाम अपने निर्णय को जारी कर सकती है। हालांकि, यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस इस तरह के प्रस्ताव पर अपनी हामी नहीं भरेगी। कांग्रेस के एक महासचिव ने गैर आधिकारिक बातचीत के दौरान कहा कि जब अयोध्या के मसले पर क्रेडिट लेने का प्रस्ताव किसी नेता ने रखा तो उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया।

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